दिल्ली डेस्क :- 1999 में हुए सेनारी हत्याकांड (Senari Massacre) में पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) के फैसले के खिलाफ बिहार सरकार (Bihar Government) की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सभी 13 आरोपियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। पटना हाईकोर्ट ने सभी 13 आरोपियों को बरी कर दिया था, जबकि निचली अदालत ने 13 में से 10 आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी। बिहार सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सेनारी नरसंहार के लिए माओवादियों को जिम्मेदार माना गया था, उन पर सवर्ण जाति के 34 लोगों की हत्या का आरोप था, लेकिन हाईकोर्ट के फैसले के बाद सभी आरोपी जेल से रिहा हो चुके हैं।18 मार्च 1999 को वर्तमान अरवल जिले (तत्कालीन जहानाबाद) के करपी थाना के सेनारी गांव में 34 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। निचली अदालत द्वारा 15 नवंबर 2016 को नरसंहार कांड के 11 आरोपियों को फांसी की सजा और अन्य को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी।
पटना हाईकोर्ट का फैसला
पटना हाईकोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ के न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार सिंह और न्यायमूर्ति अरविंद श्रीवास्तव ने अपने फैसले में कहा था कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य एक दूसरे से मेल नहीं खाते हैं। वहीं, आरोपियों की पहचान की प्रक्रिया सही नहीं है। अनुसंधानकर्ता पुलिस ने पहचान की प्रक्रिया नहीं की है। गवाहों ने आरोपियों की पहचान कोर्ट में की है, जो पुख्ता साक्ष्य की गिनती में नहीं है। इसलिए संदेह का लाभ आरोपियों को मिलता है।
कुल 74 आरोपियों में 15 को सुनाई गई थी सजा
कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा था कि इस कांड में अभियोजन और पुलिस प्रशासन आरोपियों के खिलाफ ठोस साक्ष्य पेश करने में असफल रहा। हाईकोर्ट के फैसले के बाद सवाल उठा कि जहानाबाद सिविल कोर्ट के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश तीन रंजीत कुमार सिंह ने इस नरसंहार के 15 आरोपियों को 15 नवंबर 2016 को इन्हीं सबूतों के आधार पर कैसे सजा सुनाई थी ?
उस वक्त 11 आरोपियों को मौत और अन्य को सश्रम आजीवन कारावास की सजा किन सबूतों के आधार पर दी थी। निचली अदालत (सेशन कोर्ट) ने 74 आरोपियों में से तब भी साक्ष्य के अभाव में 23 अन्य को बरी कर दिया था, जबकि कुछ की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी।